मेरी कविताएं
1.
इक मैं हूँ जो कहता हूँ,
हरपल तुम्हें पढ़नें के लिए।
क्या पढ़ना अक्षरों को पहचानना मात्र है
क्या मैं चाहता हूँ तुम्हे सिखाना मात्र इतना।
नहीं, तुम गलत हो प्रिय
मैं चाहता हूँ
तुम पढ़ लो मुझे और मैं तुम्हे।
शायद हम सक्षम भी हैं
प्रयास भी करते हैं।
क्यों हो जाते हैं विफल फिर भी
सोचो तुम, सोचुँगा मैं भी।
2.
ऐ जिंदगी दे मौका मुझे भी मुक्क़दर लिखने का,
मुझे भी तेरी तक़दीर लिखनी है ||
3.
कोई लौटा दे मुझे वो लम्हे
जो खो गए, समय की रेत पर |
मेरी यादों की ईमारत का
काम अभी बाकी है ||
4.
निर्वाण
नहीं प्राप्त हो गया था निर्वाण
बुद्ध को ऐसे ही |
था कुछ पूर्व का संचित कर्म
जो हो गया था उजागर उस जन्म में |
नहीं तो कितने ही लोग देखते हैं
गरीबी, बुढ़ापा और मृत शरीर
कितनी ही बार |
चाहता है हर कोई मुक्त होना
जन्म - मरण के बंधन से |
परन्तु नहीं छोड़ पाते हैं इच्छाएं
सिर्फ इसी जन्म की |
इच्छाएं जो बांधती हैं
जडाचक्र में |
करतें हैं उनका विस्तार केवल
और चाहते हैं मुक्त होना |
चाहता हूँ मैं भी, हो जाऊँ
मुक्त इस जन्म मरण के बंधन से |
हो जाऊँ उस परम - पिता में विलीन
हुआ था पैदा जिससे कभी |
परन्तु हो जाता हूँ विफल
जब आती है बारी छोड़ने की |
इच्छायें ! न खत्म होने वाली इच्छाएं |
इन्हीं इच्छाओं से तो हुए थे मुक्त, 'बुद्ध'
हुआ था तभी प्राप्त 'निर्वाण' |
5.
जांमे मुहब्बत पर क़ुर्बा हुए
तो क्या खाक क़ुर्बा हुए |
हिफाजते वतन को फ़ना होते
तो जमाना रोता ||
6.
बैठी है जो मेरे सामने मूरत - ऐ - संगेमरमर
मेरे परवरदिगार मुझसे कोई बेअदबी न हो जाये ||
7.
नाकाम जहाँ फिरता रहा लेकर रंग हाथों में
छूकर सनम ने सूखे हाथों से हमें रंगदार कर दिया |
8.
तुमको पाकर नाज़ करता हूँ मैं अपने आप पर
जो मुक्क्दर ने दिया मुझको वो हंसीं तोहफा हो तुम |
9.
(Madhushala for Students)
बड़ी मुश्किल से बना - बना कर
नक़ल पर्चियों का प्याला |
साकी बनकर साथी आये
पिलाने को कीमती हाला ||
अध्यापक जो मना करते हैं
है उनके मन में काला |
पिने वाला हर विद्यार्थी
परीक्ष्यालय है मधुशाला ||
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व्यर्थ हुए बदनाम यहाँ पर
पीकर पर्ची की हाला |
फ़्लाइंग में था साकी आया
केस बांधने मतवाला ||
हाथ जोड़कर खड़ा मैं पूछूं
क्यों न छुऊँ मैं प्याला |
जन्मसिद्ध अधिकार है मेरा
नक़ल भवन है मधुशाला ||
10.
कोई गीत गुनगुनाता रहता हूँ
हर पल मुसकुराता रहता हूँ।
मैं कोई घड़ी नहीं रुक जाँऊ
मैं तो साँस हूँ बस आता जाता रहता हूँ।
दोस्त ज्यादा सही, पर दुश्मन भी बनाता रहता हूँ,
हर किसी को तो नहीं, पर कुछ को अपना भी बनाता रहता हूँ।
कुछ गम पर खुशियाँ हजार फैलाता रहता हूँ,
मैं तो साँस हूँ, बस आता जाता रहता हूँ।
कभी तुम मुझसे, कभी मैं तुझसे मिलता रहता हूँ,
आईने में तेरा अक्श बनता रहता हूँ।
कोई साथ दे, न दे तेरा; मैं तेरा साथ देता रहता हूँ,
मैं तो साँस हूँ, बस आता जाता रहता हूँ।
मानुष जन्म लेने से कोई इन्सान नहीं होता।
धैर्य न धरने वावाला बलवान नहीं होता।।
कद्र तो इंसान के हुनर की होती है मेरे दोस्त।
पत्थर को ढंग से न तराशो तो वह भगवान नहीं होता।।
इंसानियत मर रही थी
इंसान
जिन्दा था, इंसानियत मर रही थी
जब एक
लड़की जिन्दा जल रही थी।
बिलकुल
थाने के नीचे
सब थे
होंठ भीचे
न जाने
उसकी माँ क्या कर रही थी
जब एक
लड़की जिन्दा जल रही थी।
ठीक
मन्दिर के सामने
न आया
कोई थामने
उसकी
चीखें निकल रही थी
जब एक
लड़की जिन्दा जल रही थी।
क्या
था उसका खोट
जो लगी
ये चोट
जिन्दगी
फिसल रही थी
जब एक
लड़की जिन्दा जल रही थी।
रोती
रही हाए
पर क्या
मिलेगा न्याय
यही
माँग कर रही थी
जब एक
लड़की जिन्दा जल रही थी।
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